Virender Kasana

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Virender Kasana Virender Kasana Advocate
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हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से लगातार बारिश ओर बादल फटने जैसी घटनाओं से क़रीब दस हज़ार करोड़ रुपये व  भारी जान- मा...
19/08/2023

हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से लगातार बारिश ओर बादल फटने जैसी घटनाओं से क़रीब दस हज़ार करोड़ रुपये व भारी जान- माल का भी नुक़सान हुआ है लेकिन धन्य हैं हिमाचल की जनता जिनके अपने साधारण परिवार से आने वाले जनप्रिय नेता मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू जी लगातार जनता के बीच में जाकर न केवल जन सुनवाई कर रहे हैं बल्कि हर सम्भव मदद भी कर रहे ।

19/08/2023
An informal meeting with dear friends Janab Firoz Siddiqui ji Vice Chairman All India Minorities Affairs and Janab Sheik...
17/08/2023

An informal meeting with dear friends Janab Firoz Siddiqui ji Vice Chairman All India Minorities Affairs and Janab Sheikh Imran Alam advocate Ex President AMU lawyers Forum.

बहुत ही आज्ञाकारी कर्मठ व लगनशील व्यक्तित्व के धनी , पूर्व निगम पार्षद व पूर्व सचिव साकेत कोर्ट बार एसोसिएशन छोटे भाई धी...
17/08/2023

बहुत ही आज्ञाकारी कर्मठ व लगनशील व्यक्तित्व के धनी , पूर्व निगम पार्षद व पूर्व सचिव साकेत कोर्ट बार एसोसिएशन छोटे भाई धीर सिंह कसाना जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ एवम् बधाई, ईश्वर आपको हमेशा ख़ुश रखे ओर जीवन में कामयाबी हासिल करो 💐

रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। इन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें बचपन...
16/08/2023

रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। इन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया। स्वामी रामकृष्ण मानवता के पुजारी थे। साधना के फलस्वरूप वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संसार के सभी धर्म सच्चे हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं। वे ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन मात्र हैं।

चितरंजन पार्क डी ब्लॉक RWA द्वारा राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया गया , आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्...
15/08/2023

चितरंजन पार्क डी ब्लॉक RWA द्वारा राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया गया , आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ एवम् बधाई ।

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मित्रों के साथ अपनी मातृभूमि गाँव औरंगाबाद रिस्तल ज़िला ग़ाज़ियाबाद में फ़ुर्सत के कुछ पल ॥
15/08/2023

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मित्रों के साथ अपनी मातृभूमि गाँव औरंगाबाद रिस्तल ज़िला ग़ाज़ियाबाद में फ़ुर्सत के कुछ पल ॥

आप सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं एवम् बधाई । हम सभी स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति द...
15/08/2023

आप सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं एवम् बधाई । हम सभी स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखें और उनके द्वारा बनाए भारत को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाएं हम देश के ज़िम्मेदार नागरिक बनकर अपना अपना फ़र्ज़ निभाये ओर राष्ट्र के निर्माण में अपना सर्वोच्च योगदान दें ।
जय हिंद जय भारत
वीरेन्द्र कसाना एडवोकेट
गाँव औरंगाबाद रिस्तल ज़िला ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश

बहुत ही सम्मानित व मिलनसार बडे भाई , सदैव मददगार हनीफ़ मलिक जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ बधाई एवम् मुबारकबाद🎂
10/08/2023

बहुत ही सम्मानित व मिलनसार बडे भाई , सदैव मददगार हनीफ़ मलिक जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ बधाई एवम् मुबारकबाद🎂

पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार व पूर्व अध्यक्ष दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी ,मेरे मार्गदर्शक हरदिल अज़ीज़ नेता माननीय ...
09/08/2023

पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार व पूर्व अध्यक्ष दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी ,मेरे मार्गदर्शक हरदिल अज़ीज़ नेता माननीय श्री अजय माकन जी से शिष्टाचार भेंट की एवम् नई दिल्ली ज़िला कांग्रेस कमेटी के आगामी कार्यक्रमों के विषय में विस्तार से चर्चा की ।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के निर्देशानुसार उदयपुर संकल्प के निर्णय के तहत नई दिल्ली ज़िला कांग्रेस कमेटी के अधीन सभी ब्...
08/08/2023

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के निर्देशानुसार उदयपुर संकल्प के निर्णय के तहत नई दिल्ली ज़िला कांग्रेस कमेटी के अधीन सभी ब्लॉक अध्यक्षों की मीटिंग आयोजित की गई जिसमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी से नियुक्त प्रभारी अब्दुल हन्नन जी ने सम्बोधित किया ।सभी साथियों का बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏻
वीरेन्द्र कसाना एडवोकेट
अध्यक्ष नई दिल्ली ज़िला कांग्रेस कमेटी

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। जय बजरंग बली की ॥
08/08/2023

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
जय बजरंग बली की ॥

भारत छोड़ो आन्दोलन सर्वभारतीय कांग्रेस कमिटी के बॉम्बे सेशन द्वारा आरम्भ किया गया था, जिसके मुख्य सुत्राधार महात्मा गाँधी...
08/08/2023

भारत छोड़ो आन्दोलन सर्वभारतीय कांग्रेस कमिटी के बॉम्बे सेशन द्वारा आरम्भ किया गया था, जिसके मुख्य सुत्राधार महात्मा गाँधी थे. इसका आरम्भ 8 अगस्त सन 1942 में हुआ था और इसी समय द्वीतीय विश्वयुद्ध भी चल रहा था. महात्मा गाँधी ने इसी आन्दोलन के एक भाषण में देश्वासियों को ‘करो या मरो’ का सन्देश दिया था. इस आन्दोलन का मुख्य लक्ष्य भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराना था. इस समय देश में कुछ ऐसे लोग भी थे, जो भारत छोड़ो आन्दोलन का समर्थन नहीं कर रहे थे. मुस्लिम लीग, इंडियन इम्पीरियल पुलिस, ब्रिटिश इंडियन आर्मी और बहुत से ऐसे व्यापारी जिन्हें द्वितीय युद्ध की वजह से बहुत अधिक लाभ प्राप्त हो रहा था, इन सभी ने भारत छोड़ो आन्दोलन को अपना समर्थन नहीं दिया.

इस समय कई युवा आज़ाद हिन्द फौज़ और नेता जी सुभाष चंद बोस के विचारों से प्रभावित थे. इन युवाओं ने भी भारत छोड़ो आन्दोलन में अधिक हिस्सा नहीं लिया. इस समय भारत छोड़ो आन्दोलन को अमेरिका का समर्थन प्राप्त हुआ और वहाँ के तात्कालिक राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन डी रोसवैल्ट ने यूनाइटेड किंगडम के तात्कालिक प्रधानमन्त्री विस्टन चर्चिल को इस बात पर मजबूर किया कि वे भारतवासियों की मांगों को पूरी करें. इस समय ब्रिटिश सरकार ने हालाँकि भारत को तात्कालिक रूप से आज़ादी देने से मना कर दिया.

वर्ष 1939 में कई भारतीय राष्ट्रवादियों को इस बात का क्रोध था कि भारत को बिन वजह ही दुसरे विश्वयुद्द में शामिल किया गया है. दरअसल इस समय भारत के गवर्नर जनरल लार्ड लिनलिथगो था, जिसने भारत की मर्ज़ी जाने बिना ही दुसरे विश्व युद्द में भारत को शामिल कर दिया. मुस्लिम लीग इस युद्ध में भारत के शामिल होने का समर्थन कर रहा था, किन्तु उसी जगह कांग्रेस इस मुद्दे पे दो भागों में बंट गया. युद्द के समय कांग्रेस के वर्किंग कमिटी की बैठक में यह तय किया गया कि फासीवाद के ख़िलाफ़ लड़ने में भारत का योगदान रहेगा, किन्तु इस पर भारत को भी आज़ादी मिलनी चाहिए. हालाँकि अहिंसात्मक विचारों से प्रभावित होने की वजह से महात्मा गाँधी ने इसका समर्थन नहीं किया. महात्मा गाँधी किसी भी तरह से युद्ध में शामिल नही होना चाहते थे. इस वजह से इस समय भारतीय नेताओं में मतभेद चलता रहा.

क्रिप्स मिशन
मार्च 1942 में स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स ने एक विशेष योजना बनायी, जिसका वर्णन नीचे किया जा रहा है.

क्रिप्स मिशन पहली बार हुआ था, जिसके अंतर्गत ब्रिटिश सरकार ने भारत को डोमिनियन का अधिकार दिया.
भारतीयों को इस मिशन के अंतर्गत अपना संविधान बनाने का मौक़ा दिया गया.
क्रिप्स मिशन हालाँकि कांग्रेस, मुस्लिम लीग आदि को संतुष्ट करने के लिए लाया गया था, अतः इसे इन सभी के द्वारा ठुकरा दिया गया.
महात्मा गाँधी एक अखंड भारत चाहते थे वहीँ दूसरी तरफ मुस्लिम लीग के लोग एक अलग देश पकिस्तान के नाम से चाहते थे. कांग्रेस भारत की मिलिट्री पर पूरा अधिकार चाहती थी और इनका कहना था कि ‘एक ग़ुलाम देश किसी भी तरह से आगे नहीं बढ़ सकता है.’
मुस्लिम लीग के अनुसार क्रिप्स मिशन में मुस्लिमों को न्यूनतम अधिकार दिया गया था.
हिन्दू महासभा ने पकिस्तान के चर्चे की वजह से इसे नकार दिया.
क्रिप्स मिशन के फेल होने का सबसे बड़ा कारण था कि इसमें सत्ता के हस्तानान्तरण की कोई भी शर्त स्पष्ट नहीं थी. इसी के साथ इसे भारत की सभी राजनीतिक संस्थानों ने भी ठुकरा दिया था.

भारत छोड़ो आन्दोलन के विशेष प्रभाव
वर्ष 1939 में जब भारत को जर्मनी और ब्रिटेन के युद्ध के मध्य लाया गया तो कांग्रेस द्वारा यह प्रस्ताव लाया गया कि भारत तब तक इसमें शामिल नहीं होगा जब तक यहाँ के नेताओं से बात नहीं होगी. महात्मा गाँधी को इस बात पर सख्त ऐतराज़ था. उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार से भारत के लोगो के लिए रोटी की मांग की गयी थी, किन्तु ब्रिटेन सरकार इसे पत्थर दे रही है. इस आन्दोलन के विशेष कारक निम्नलिखित हैं.

यह सविनय अवज्ञा आन्दोलन का ही एक अंश था, जिसे महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह का नाम दिया था. सर्वभारतीय कांग्रेस कमिटी द्वारा आरम्भ किये गए
इस आन्दोलन में कई कांग्रेस नेताओं को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जेल में डाल दिया
एक समय के लिए भारत में कांग्रेस पर बैन भी लगा दिया था. इस तरह से यह आन्दोलन कांग्रेस दल के लिए एक महत्वपूर्ण आन्दोलन सिद्ध हुआ.
इन नेताओं के जेल में जाने पर आम लोगों ने कई सरकारी संपात्तियों को क्षति पहुंचानी शुरू की. इनमे सबसे अधिक क्षति पुलिस स्टेशन, लॉ कोर्ट और रेल सेवा को पहुंचाई गयी.,

आपको मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ एवम् बधाई 💐HAPPY FRIENDSHIP DAYआपका साथीवीरेन्द्र कसाना एडवोकेटपूर्व सचिव नई दिल...
06/08/2023

आपको मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ एवम् बधाई 💐
HAPPY FRIENDSHIP DAY
आपका साथी
वीरेन्द्र कसाना एडवोकेट
पूर्व सचिव
नई दिल्ली बार एसोसिएशन पटियाला हाउस कोर्ट्स
अध्यक्ष - नई दिल्ली ज़िला कांग्रेस कमेटी
पूर्व चेयरमैन - मध्य क्षेत्र दिल्ली नगर निगम
पूर्व सदस्य- दिल्ली विकास प्राधिकरण
पूर्व प्रत्याशी - ग्रेटर कैलाश विधानसभा क्षेत्र

बचपन के मित्र , सुख दुख के साथी, बहुत ही प्यारे हरदिल अज़ीज़ दोस्त , हमारे परिवार के सदस्यों में से एक जनाब हाजी मोहम्मद...
06/08/2023

बचपन के मित्र , सुख दुख के साथी, बहुत ही प्यारे हरदिल अज़ीज़ दोस्त , हमारे परिवार के सदस्यों में से एक जनाब हाजी मोहम्मद इक़बाल मलिक जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ एवम् बधाई।
Happy birthday 🎂💐🎉

पेड लगाओ , पेड़ बचाओ ॥
01/08/2023

पेड लगाओ , पेड़ बचाओ ॥

आधुनिक राजस्थान के निर्माता और सर्वाधिक समय तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने वाले मोहनलाल सुखाड़िया एक अच्छे राजनेता व स्व...
31/07/2023

आधुनिक राजस्थान के निर्माता और सर्वाधिक समय तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने वाले मोहनलाल सुखाड़िया एक अच्छे राजनेता व स्वतंत्रता सेनानी भी थे. इनका जन्म 31 जुलाई 1916 को राजस्थान के झालावाड में हुआ था. ये जैन धर्म के अनुयायी थे. इनके पिता पुरुषोत्तम लाल सुखाड़िया जी एक रणजी खिलाड़ी थे.

आधुनिक राजस्थान के निर्माता मोहनलाल सुखाड़िया का जन्म 31 जुलाई 1916 को नाथद्वारा में हुआ. 1939 ई से इन्होने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया और मेवाड़ प्रजामंडल में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया. श्रीमती इंदुबाला के साथ अंतरजातीय विवाह कर इन्होने सामाजिक क्षेत्र में भी क्रांति पैदा कर दी.

1947 ई में मेवाड़ के प्रथम लोकप्रिय मंत्रीमंडल में सुखाड़िया को प्रजामंडल की ओर से मंत्री नियुक्त किया गया. 13 नवम्बर 1954 को सुखाड़िया राजस्थान के मुख्यमंत्री बने, और सत्रह वर्षों तक राजस्थान निर्माण में अपनी भूमिका निभाई.

मुख्यमंत्री रहते हुए भी आर्थिक और सामाजिक जीवन से सामंती अवशेषों को नष्ट करने के लिए इनको संघर्ष करना पड़ा. इन्होंने राजस्थान में पंचायतीराज को सशक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया. सुखाड़िया 1972-77 ई तक विभिन्न राज्यों के राज्यपाल रहे एवं 1980 ई में उदयपुर से इन्हें सांसद चुना गया.

2 फ़रवरी, 1982 को बीकानेर में इनका निधन हो गया था. ये अपने समय के राजस्थान में सबसे प्रसिद्ध नेता थे. अब तक सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले थे. जिन्होंने 17 वर्ष तक शासन किया. मोहनलाल सुखाड़िया कांग्रेस पार्टी के नेता थे जो कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु आदि राज्यों के राज्यपाल भी रह चुके हैं.

जैन धर्म से सम्बन्ध रखने वाले सुखाड़िया ने वी.जे.टी.आई.’ (वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजीकल इंस्टीट्यूट) से इंजीनियरिंग की तथा बाद में मुंबई आ गये, यहाँ से वो कांग्रेस के महासचिव चुने गये.

जब मोहनलाल सुखाड़िया मुंबई से लौटकर नाथ द्वारा आए तो इन्होने अपनी एक इलेक्ट्रिकल की शॉप खोली तथा यही से वो ब्रिटिश शासन के खात्मे तथा भारत में नव स्थापित सरकार के लिए योजनाएं बनाते थे. इनके निधन के बाद इंदुबाला सुखाड़िया उदयपुर से सांसद चुनी गई.

धनपत राय श्रीवास्तव (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) जो मुंशी प्रेम चंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्व...
31/07/2023

धनपत राय श्रीवास्तव (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) जो मुंशी प्रेम चंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।

उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 म...
31/07/2023

उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।{राम-हिंदू,मोहम्मद-मुस्लिम,सिंह-सिख}

अनाथालय में उधमसिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।

उधम सिंह जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुँचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।

उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुँच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।

बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।

आज अपने ग्रह क्षेत्र जनता डी डी ए फ़्लैटस कालकाजी में पुराने दोस्तों से मिलने का अवसर मिला ।
30/07/2023

आज अपने ग्रह क्षेत्र जनता डी डी ए फ़्लैटस कालकाजी में पुराने दोस्तों से मिलने का अवसर मिला ।

Happy international Friendship day 💐अन्तर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐रिश्तों से बड़ी चाहत और क्या होगी...
30/07/2023

Happy international Friendship day 💐
अन्तर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐

रिश्तों से बड़ी चाहत और क्या होगी,
दोस्ती से बड़ी इबादत और क्या होगी,
जिसे दोस्त मिल सके कोई आप जैसा,
उसे ज़िन्दगी से कोई और शिकायत क्या होगी।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर का प्रारंभिक जीवन बंगाल पुनर्जागरण के एक बेहद मजबूत स्तंभ माने जाने वाले ईश्वर चंद्र विद्यासागर क...
29/07/2023

ईश्वर चंद्र विद्यासागर का प्रारंभिक जीवन बंगाल पुनर्जागरण के एक बेहद मजबूत स्तंभ माने जाने वाले ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1920 को पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मेदिनीपुर जिले के एक निर्धन धार्मिक परिवार में हुआ था. ईश्वर चंद्र विद्यासागर का बचपन बेहद गरीबी में व्यतीत हुआ था. गांव के ही स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद विद्यासागर के पिता उन्हें कोलकाता ले कर आ गए थे. वह कोई भी चीज बहुत जल्दी सीख जाते थे. उत्कृष्ट अकादमिक प्रदर्शन के कारण उन्हें विभिन्न संस्थानों द्वारा कई छात्रवृत्तियां प्रदान की गईं. परिवार को आर्थिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अध्यापन कार्य प्रारंभ किया. वर्ष 1839 में ईश्वर चंद्र ने सफलता पूर्वक अपनी कानून की पढ़ाई संपन्न की. 1841 में मात्र इक्कीस वर्ष की आयु में उन्होंने संस्कृत के शिक्षक के तौर पर फोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया. पांच साल बाद फोर्ट विलियम कॉलेज छोड़ने के पश्चात ईश्वर चंद्र विद्यासागर संस्कृत कॉलेज में बतौर सहायक सचिव नियुक्त हुए. पहले ही वर्ष उन्होंने शिक्षा पद्वति को सुधारने के लिए अपनी सिफारिशें प्रशासन को सौप दीं. लेकिन उनकी रिपोर्ट ने उनके और तत्कालीन कॉलेज सचिव रसोमय दत्ता के बीच तकरार उत्पन्न कर दी थी, जिसकी वजह से उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा. लेकिन 1849 में ईश्वर चंद्र विद्यासागर को साहित्य के प्रोफेसर के रूप में संस्कृत कॉलेज से एक बार फिर जुड़ना पड़ा. 1851 में वह इस कॉलेज के प्राधानचार्य नियुक्त किए गए. लेकिन रसोमय दत्ता के अत्याधिक हस्तक्षेप के कारण ईश्वर चंद्र विद्यासागर को संस्कृत कॉलेज से त्यागपत्र देना पड़ा, जिसके बाद वह प्रधान क्लर्क के तौर पर दोबारा फोर्ट विलियम कॉलेज में शामिल हुए.

एक समाज सुधारक के रूप में ईश्वर चंद्र विद्यासागर ऐसा माना जाता है कि विद्यासागर जब किसी निर्धन, असहाय और निर्दोष व्यक्ति पर अत्याचार होते देखते थे, तब स्वत: ही उनकी आंखें भर आती थीं. उन्हें लोग दया का सागर भी कहते थे. ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने महिलाओं के उत्थान को लेकर महत्वपूर्ण प्रयास किए. तत्कालीन समाज में बाल-विवाह जैसी कुप्रथा अपनी जड़ जमा चुकी थी, इसके विपरीत विधवा विवाह को बेहद घृणित दृष्टि से देखा जाता था. इसी कारण बंगाल में महिलाओं विशेषकर बाल विधवाओं की स्थिति बेहद दयनीय थी. कुछ तथाकथित कुलीन वर्गीय ब्राह्मणों में यह व्यवस्था थी कि पत्नी के निधन हो जाने पर वह किसी भी आयु में दूसरा विवाह कर सकते हैं. यह आयु वृद्धावस्था भी हो सकती थी. पत्नी के रूप वह किशोरवय लड़की का चयन करते थे और जब उनकी मृत्यु हो जाती थी तो उस विधवा को समाज से अलग कर उसके साथ पाशविक व्यवहार किया जाता था. जो महिलाएं इस तरह के व्यवहार को सहन नहीं कर पाती थीं, वह खुद को समर्थन देने के लिए वेश्यावृत्ति की ओर कदम बढ़ा लेती थीं. वर्ष 1853 में हुए एक अनुमान के अनुसार कोलकाता में लगभग 12,718 वेश्याएं रहती थी. ईश्वर चंद्र विद्यासागर उनकी इस हालत को परिमार्जित करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे. अक्षय कुमार दत्ता के सहयोग से ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह को हिंदू समाज में स्थान दिलवाने का कार्य प्रारंभ किया. उनके प्रयासों द्वारा 1856 में अंग्रेजी सरकार ने विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित कर इस अमानवीय मनुष्य प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की कोशिश की. ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपने पुत्र का विवाह भी एक विधवा से ही किया था.

ईश्वर चंद विद्यासागर का निधन एक महान विद्वान और समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर का 29 जुलाई, 1891 को 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनके निधन के बाद प्रख्यात बंगाली साहित्यकार और लेखक रबिन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर के जीवन के विषय में जानकर कोई भी आश्चर्यचकित हो सकता है कि कैसे भगवान ने लाखों बंगाली लोगों को जीवन देने के बाद एक इंसान को पैदा किया.

ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक दार्शनिक, शिक्षक, लेखक, अनुवादक, प्रकाशक, उद्यमी, सुधारक, और परोपकारी व्यक्ति थे. उन्होंने बांग्ला भाषा को सरल बनाने और उसके आधुनिकीकरण के विषय में भी महत्वपूर्ण प्रयास किए. उन्होंने युक्तिसंगत और सरल बंगाली वर्णमाला और प्रकार, जो चार्ल्स विल्किंस के समय से चलती आ रही थी, में भी जरूरी परिवर्तन किए.

क्या ग़ज़ब की सादगी है ओर शानदार जज़्बा है पूर्व विधायक जी का अपनी विधानसभा के मतदाताओं के प्रति ॥यह है चौधरी कमर हसन गु...
27/07/2023

क्या ग़ज़ब की सादगी है ओर शानदार जज़्बा है पूर्व विधायक जी का अपनी विधानसभा के मतदाताओं के प्रति ॥
यह है चौधरी कमर हसन गुर्जर पूर्व विधायक राजौरी जम्मू, बारिश में अपने मतदाताओं की तकलीफ़ को जानने, मदद करने के लिए दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र के सैकड़ों किलोमीटर में फैले राजौरी विधानसभा में बारिश के बावजूद दौरा कर रहे हैं ओर हर सम्भव मदद भी पहुँचा रहे हैं ।

भारत में सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक के रुप में जानें जाने वाले छत्रपति साहू महाराज कोल्हापुर के इतिहास में एक अ...
26/07/2023

भारत में सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक के रुप में जानें जाने वाले छत्रपति साहू महाराज कोल्हापुर के इतिहास में एक अमूल्य मणि के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं. छत्रपति साहू महाराज ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने राजा होते हुए भी दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता बनाए रखी. उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की थी. ग़रीब छात्रों के छात्रावास स्थापित किये और बाहरी छात्रों को शरण प्रदान करने के आदेश दिए. साहू महाराज के शासन के दौरान बाल विवाह पर ईमानदारी से प्रतिबंधित लगाया गया. उन्होंने अंतरजातिय विवाह और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में समर्थन की आवाज़ उठाई थी. इन गतिविधियों के लिए महाराज साहू को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. साहू महाराज ज्योतिबा फुले से प्रभावित थे और लंबे समय तक सत्य शोधक समाज, फुले द्वारा गठित संस्था के संरक्षण भी रहे.

पाकिस्तानी सेना के करीब 5000 सैनिकों ने अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए 3 मई 1999 को कारगिल के ऊंची पहाड़ियों प...
25/07/2023

पाकिस्तानी सेना के करीब 5000 सैनिकों ने अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए 3 मई 1999 को कारगिल के ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था। इस बात की सूचना भारतीय सेना को एक चरवाहे ने दी थी कि पाकिस्तान ने कारगिल पर कब्जा कर लिया है। भारतीय सेना जब पेट्रोलिंग करने गई तो उन्हें पकड़ लिया गया व 5 जवानों की हत्या कर दी गई। पाकिस्तानी सेना ने भारतीय पोस्ट को तहस नहस कर दिया था।

भारतीय सेना ने इस बात की जानकारी जब सरकार को दी तो सेना को पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने का आदेश दिया गया। इस दौरान सेना ने ऑपरेशन विजय के तहत कार्रवाई की। भारतीय वायुसेना (Indian Airforce) की ओर से पाकिस्तान को खदेड़ने के लिए मिग-27 (Mig-27) व मिग-29 (Mig-29) का इस्तेमाल किया गया। इस अभियान में लेफ्टिनेंट नचिकेता (Lieutenant Nachiketa) को पाकिस्तान (Pakistan) ने बंदी बना लिया। पाकिस्तान ने जहां कब्जा किया था, उन ठिकानों पर भारतीय वायुसेना ने बमबारी किया। इस दौरान आर-77 मिसाइलों के जरिए हमला किया गया। पाकिस्तान ने भारतीय विमान मिग-17 को मार गिराया था, जिसमें हमारे 4 फौजी शहीद हो गए थे।

- 3 मई को एक कश्मीरी चरवाहे ने भारतीय सेना को बताया कि पाकिस्तानी सेना ने कारगिल पर कब्जा कर लिया है।

- 5 मई को भारतीय सेना जब पेट्रोलिंग करने गई तो उन्हें पकड़ लिया गया व 5 जवानों की हत्या कर दी गई।

- 27 मई को भारतीय वायुसेना की ओर से पाकिस्तान को खदेड़ने के लिए मिग-27 व मिग-29 का इस्तेमाल किया गया।

- 5 जून को भारतीय सेना ने पाक रेंजर्स द्वारा कब्जा किए जानें की सूचना भारतीय मीडिया को दी। भारत के अखबारों में यह खबर तहलका मचा दी।

- 6 जून से भारतीय सेना ने पूरी ताकत से पाकिस्तान पर हमला करने का मन बना लिया। 9 जून को बाल्टिक की 2 चौकियों पर भारत ने तिरंगा फहराया।

- 11 जून को भारत ने जनरल परवेज मुशर्रफ व पाकिस्तानी सेना के अध्यक्ष जनरल अजीज खान के बातचीत का आडियो रिकॉर्डिंग पूरी दुनिया के सामने जारी किया और बताया कि इस नापाक हरकत में पाक आर्मी का ही हाथ है।

- 13 जून को भारतीय सेना ने द्रास सेक्टर में तोलिंग पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना को खदेड़कर तिरंगा फहराया।

- 15 जून को भारत-पाकिस्तान के युद्ध में अमेरिका को हस्तक्षेप करना पड़ा। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने परवेज मुशर्रफ से फोन पर कहा कि अपनी सेना को कारगिल सेक्टर से जल्दी से हटा दें।

- 29 जून को भारतीय सेना के सूरवीरों ने टाइगर हिल के पास की दो पोस्ट पर फिर से तिरंगा लहराया। ये पोस्ट भारतीय नजरिए से महत्वपूर्ण थी इसीलिए इसे जल्दी कब्जा किया गया। इन दोनों पोस्ट का नाम है 5060 व 5100 ।

- भारतीय सेना ने पाकिस्तान का मनोबल तोड़ कर रख दिया था। 2 जुलाई के दिन भारतीय सेना के जवानों ने कारगिल को तीनों तरफ से घेर लिया। दोनों देशों के तरफ से खूब गोलीबारी, बमबारी हुई। सैनिक भी शहीद हुए। हालांकि अंततः टाइगर हिल पर भारत ने तिरंगा लहराया। भारत ने धीरे-धीरे सभी पोस्टों पर कब्जा जमा लिया और अमेरिका को इस बात की सूचना दी।

बाद में जवानों की शहादत के याद के तौर पर 26 जुलाई को हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाने का घोषणा की गई ।

Today at District Court Gautambudh Nagar, there is a big difference in passing law and practicing law 👍
25/07/2023

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आज स्वतंत्रता सेनानी व प्रथम उप महापौर दिल्ली लाला रामचरण  अग्रवाल जी की 47 वीं जयंती पर पूर्व सांसद व पूर्व अध्यक्ष दिल...
25/07/2023

आज स्वतंत्रता सेनानी व प्रथम उप महापौर दिल्ली लाला रामचरण अग्रवाल जी की 47 वीं जयंती पर पूर्व सांसद व पूर्व अध्यक्ष दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी माननीय जयप्रकाश अग्रवाल जी व वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सानिध्य में विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की ।

Today at District Court Faridabad court 👍
24/07/2023

Today at District Court Faridabad court 👍

आज दिल्ली आफिस में मध्य प्रदेश से पधारे मंदसौर ज़िला पंचायत के सदस्य व कांग्रेस पार्टी के बहुत ही कर्मठ नेता व सहयोगी सा...
23/07/2023

आज दिल्ली आफिस में मध्य प्रदेश से पधारे मंदसौर ज़िला पंचायत के सदस्य व कांग्रेस पार्टी के बहुत ही कर्मठ नेता व सहयोगी साथी दीपक सिंह गुर्जर जी से अनौपचारिक मुलाक़ात हुई । बहुत ही ज़मीनी व सामाजिक कार्यकर्ता हैं दीपक सिंह गुर्जर जी, ईश्वर आपको हमेशा कामयाबी दे व भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ।

मौन सत्याग्रह, जन्तर मंतर नई दिल्ली
23/07/2023

मौन सत्याग्रह, जन्तर मंतर नई दिल्ली

यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त का जन्म चटगांव (अब बांग्लादेश में) के विख्यात सेनगुप्ता परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन एक ...
21/07/2023

यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त का जन्म चटगांव (अब बांग्लादेश में) के विख्यात सेनगुप्ता परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन एक वकील के रूप में प्रारम्भ किया था, किन्तु बाद में वे इसे त्यागकर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े। वे मज़दूर हित समर्थक थे तथा असम-बंगाल रेलवे की हड़ताल का संयोजन किया। इसके बाद वे बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भी उन्होंने सक्रिय नेतृत्व किया। वे 1931 ई. में प्रथम गोलमेज सम्मेलन प्रारम्भ होने पर इंग्लैण्ड गए थे। वे जनवरी, 1932 ई. में बन्दी बना लिये गए तथा उन्हें पूना, दार्जिलिंग व राँची में कैद रखा गया। उनकी 1933 ई. में 48 वर्ष की अल्पायु में मृत्यु हो गई। उन्होंने जीवनभर राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया। वे ‘देशप्रिय’ उपनाम से विख्यात हैं।

स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख नायक यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त का जन्म 22 फ़रवरी, 1885 ई. को चटगांव में हुआ था। उनके पिता जात्रमोहन सेनगुप्त बड़े लोकप्रिय व्यक्ति तथा बंगाल विधान परिषद के सदस्य थे। यतीन्द्र मोहन बंगाल में शिक्षा पूरी करने के बाद 1904 ई. में इंग्लैंड गए और 1909 ई. में बैरिस्टर बनकर स्वदेश वापस आए। भारत आने से पहले उन्होंने 'नेल्ली ग्रे' नाम की एक अंग्रेज़ लड़की से विवाह कर लिया था। समय आने पर श्रीमती नेल्ली सेनगुप्त ने भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भाग लिया।

यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त को पाँच बार कोलकाता का मेयर चुना गया था। इन्होंने एक अंग्रेज़ युवती नेली सेनगुप्त से विवाह किया था, जिसने देश को स्वाधीन कराने के लिए अपने पति के समान ही जेल की सजाएँ भोगीं।

यतीन्द्र मोहन ने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत और रिपन लॉ कॉलेज में अध्यापक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरम्भ किया। 1911 में वे कांग्रेस में सम्मिलित हुए। यह सम्पर्क बढ़ता गया। 1920 की कोलकाता कांग्रेस में उन्होंने प्रमुख रूप से भाग लिया। किसानों और मज़दूरों को संगठित करने की ओर उनका ध्यान विशेष रूप से था।

व्योमेश चन्द्र बनर्जी का जन्म 29 दिसम्बर 1844 को कलकत्ता के एक उच्च मध्यम वर्ग के कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पू...
21/07/2023

व्योमेश चन्द्र बनर्जी का जन्म 29 दिसम्बर 1844 को कलकत्ता के एक उच्च मध्यम वर्ग के कुलीन ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पूर्वज हुगली जिले के बंगदा नामक गाँव से थे। उनके पिता कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायवादी थे।1859 में उनका विवाह हेमांगिनी मोतीलाल के साथ हुआ। उन्होंने 1862 डब्ल्यू॰पी॰ अटोर्नीज़ ऑफ़ कलकत्ता सुप्रीम कोर्ट में लिपिक की नौकरी आरम्भ की। इस समय उन्होंने कानूनी जानकारियाँ प्राप्त की जो उनके आगे के जीवन में काफी सहायक रही। 1864 में उन्हें बम्बई के आर॰जे॰ जीजाबाई ने छात्रवृत्ति के साथ इंग्लैण्ड भेजा।1868 में अपनी कोलकाता वापसी पर उन्हें सर चार्ल्स पॉल, बैरिस्टर-एट-लॉ, कलकत्ता उच्च न्यायालय में नौकरी मिली।अन्य वकील जे॰पी॰ केनेडी ने भी उनकी एक वकील के रूप में काफी सहायता की। कुछ ही समय में वो उच्च न्यायालय के जाने-माने वकीलों में से एक हो गये। वो कलकत्ता विश्वविद्यालय के छात्र एवं इसके विधि संकाय के अध्यक्ष भी रहे[1] और इसके बाद विधान परिषद् के लिए भी चुने गये वो कलकत्ता बार से 1901 में सेवा निवृत्त हुये।उनकी पुत्री जानकी बनर्जी ने नेवंहम कॉलेज, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में प्राकृत विज्ञान, रशायन शास्त्र, प्राणीशास्त्र और कार्यिकी की शिक्षा प्राप्त की।

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बम्बई में 1885 में हुये प्रथम सत्र की अध्यक्षता की।यह सत्र 28 दिसम्बर से 31 दिसम्बर तक चला था और 72 सदस्यों ने इसमें भाग लिया था।

Barot valley , Mandi, Himachal Pradesh.
20/07/2023

Barot valley , Mandi, Himachal Pradesh.

विश्व में दिल्ली को पहचान दिलाने वाली व दिल्ली के विकास को चार चाँद लगाने वाली , दिल्ली की असल शिल्पकार, दिल्ली की तीन ब...
20/07/2023

विश्व में दिल्ली को पहचान दिलाने वाली व दिल्ली के विकास को चार चाँद लगाने वाली , दिल्ली की असल शिल्पकार, दिल्ली की तीन बार मुख्यमन्त्री रही , पूर्व राज्यपाल ,दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की सम्मानित अध्यक्षा रही शीला दिक्षित जी की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि एवम् शत् शत् नमन् 💐

बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर, 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, ज़िला-नानी बेदवान (बंगाल) में हुआ था। उनका...
20/07/2023

बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर, 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, ज़िला-नानी बेदवान (बंगाल) में हुआ था। उनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रांत के वर्धमान ज़िला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। बटुकेश्वर दत्त का पैत्रिक गाँव बंगाल के 'बर्दवान ज़िले' में था, पर पिता 'गोष्ठ बिहारी दत्त' कानपुर में नौकरी करते थे।

बटुकेश्वर की स्नातक स्तरीय शिक्षा पी.पी.एन. कॉलेज, कानपुर में सम्पन्न हुई। उन्होंने 1924 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और तभी माता व पिता दोनों का देहान्त हो गया। इसी समय वे सरदार भगतसिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संगठन ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन’ के सदस्य बन गए। सुखदेव और राजगुरु के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा। आज़ादी के बाद नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से शादी करने के बाद बटुकेश्वर दत्त पटना में रहने लगे थे। उनको अपना सदस्य बनाने का गौरव 'बिहार विधान परिषद' ने 1963 में प्राप्त किया था।

भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। देश ने सबसे पहले 8 अप्रैल, 1929 को उन्हें उस समय जाना, जब वे भगतसिंह के साथ केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। उन्होंने आगरा में स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था। सन 1924 में कानपुर में बटुकेश्वर दत्त की भगतसिंह से भेंट हुई थी। इसके बाद उन्होंने 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया और इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा। केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकने के कारण इन्हें भगतसिंह के साथ आजीवन कारावास की सज़ा हुई।

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