02/10/2023
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हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्या है Restitution Of Conjugal Rights?
हमारे समाज मेंं जितनी तेजी से शादियां हो रही हैं उतनी ही तेजी से रिश्ते टूट भी रहे हैं. जो अपने रिश्ते से खुश नहीं होते तो वो तलाक का रास्ता अपनाते हैं
लेकिन कुछ लोग बिना कोई कानूनी प्रक्रिया अपनाए ही अलग हो जाते हैं.
हमारे देश में शादी को जन्म जन्मांतर का बंधन माना जाता है, लेकिन कभी-कभी यह रिश्ता आपसी मनमुटाव या फिर समझ की कमी जैसे सामान्य सी बात को लेकर कुछ समय के बाद ही टूट जाता है और परिवार बिखर जाता है. इस तरह के मामलों में, एक महिला को अपने पति के साथ रहने और जीवन जीने के लिए मजबूर करने के लिए कानूनी कदम उठाने का पूरा अधिकार है.
आपको बता दे कि ऐसा कानूनी अधिकार न केवल महिलाओं के लिए उपलब्ध है, बल्कि पुरुष भी इस अधिकार का लाभ उठा सकता है यदि उसकी पत्नी बिना किसी उचित कारण के दूर हो जाती है.
शादी और परिवार को टूटने से बचाने के लिए हिन्दू मैरिज एक्ट में प्रावधान मौजूद है. हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के Chapter III की धारा 9 में वैवाहिक अधिकारों की बहाली (Restitution of conjugal rights) के बारे में बताया गया है. अगर पति और पत्नी में से कोई एक दूसरे को बिना बोले या बिना ठोस कारण के छोड़ के चला जाए या दूसरे के समाज से हट जाए तो उन दोनों में से कोई भी हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 9 के अंतर्गत रेस्टिटूशन ओफ़ कोनजुगल राइट्स का इस्तेमाल करते हुए जिला न्यायालय (District Court) में याचिका दायर कर सकता हैं.
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दिए गए बयानों से संतुष्ट होने के बाद, कोर्ट, पति या पत्नी जो घर से चले गए हैं, उनको वापस आने का निर्देश दे सकती है.
यह कानून हर उस व्यक्ति पर लागू होता है जो हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 2(1)(a) के तहत जो हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास के अनुसार, जिसके अन्तर्गत वीरशैव, लिंगायत अथवा ब्राह्मो समाज, प्रार्थना समाज या आर्य समाज के अनुयायी भी आते हैं, धर्मतः हिन्दू हो.
रेस्टीटूशन ऑफ़ कोंजूगाल राइट्स से संबंधित केस: (Harvinder Kaur vs Harmander Singh Choudhary)
यह मामला वर्ष 1984 में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा सुना गया. इस केस में पत्नी अपने पति को बिना बोले छोड़ कर चली जाती है और बहुत दिनों तक वापस नहीं आती है. पति अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 9 के तहत रेस्टीटूशन ऑफ़ कोंजूगाल राइट्स का केस दर्ज करवाता है.
पति द्वारा केस करने के बाद कोर्ट पत्नी को पति के पास वापस आने का आदेश देती है लेकिन पत्नी वापस नहीं आती है. वह डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के निर्णय को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती देती है. उसका कहना था कि हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 9 असंवैधानिक है क्योंकि यह उसके संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन करता है.
दिल्ली हाई कोर्ट उस महिला के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाता है और आदेश दिया की हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 9 असंवैधानिक नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का हनन नहीं करता,!
Bombay Court Orders State To Pay ₹ 2 Lakh To Man For "Illegal" Detention
The police action of arresting a music teacher and illegally detaining him for a bailable offence smacks of police high-handedness and insensitivity, the
Wife insisting on staying with husband at the place of his posting is not cruelty: Chhattisgarh High Court
The Chhattisgarh High Court recently held that a wife insisting on staying with the husband at the place of his work posting is not cruelty under the Hindu
आपराधिक मुकदमों में गवाहों को बुलाने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप बनाएं लेकिन गोपनीयता सुनिश्चित करें: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पुलिस को सुझाव दिया
किसी भी पक्ष को मुकदमे में एक ही कारण से दो बार परेशान नहीं होना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट ने " रचनात्मक रेस ज्यूडिकाटा " पर कहा
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यदि कोई पत्नी #व्यभिचार में रह रही है, तो #कानूनन वह पति से प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी
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Marriage certificates issued by notary public have no value in the eyes of law: Orissa High Court
https://lawupdates.in/marriage-certificates-issued-by-notary-public-have-no-value-in-the-eyes-of-law-orissa-high-court
पत्नी से लंबे समय तक अलग रहने के बाद दूसरी महिला के साथ रह रहा पति 'क्रूरता' साबित होने पर तलाक से इनकार करने का आधिकारी नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
पति की प्रताड़ना के खिलाफ शिकायत करने के लिए पत्नी को पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं घरेलू हिंसा अधिनियम (domestic violence act) को ही ले लीजिए इसके अलावा 498A के तहत भी महिलाओं को खासे अधिकार दिए गए हैं, लेकिन अब कई मामलों में सामने आया है कि उनकी ओर से इसका गलत इस्तेमाल हो रहा है।
अब महिलाएं पुरूषों को प्रताड़ित करने में होड़ में हैं ऐसे कई पुरूष हैं, जिनकी पत्नियां उनसे झाडू-पोंछा लगवाना, कपड़े धुलवाना, खाना बनाना जैसा काम कराती हैं, जिसकी वजह से उनकी नौकरी तक छूट चुकी है, इसके बावजूद ऐसा करने से मना करने पर वह झूठे मुकदमे में फंसा देने की धमकी देती है पुरूषों को लेकर इस मामले में कानून का हाथ थोड़ा तंग है।
लेकिन आप सभी को जानकारी दे दें कि इसके बावजूद पत्नी यदि मानसिक अथवा शारीरिक रूप से प्रताड़ित करे अथवा झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दे तो पति भी उसके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकता है।
पत्नी से परेशान पति यह कदम उठा सकता है –
1. यदि पत्नी किसी झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी देती है अथवा अन्य किसी प्रकार की गलत धमकी देती है तो यह अपराध की श्रेणी में आता है पति को बगैर देर किए उसके खिलाफ प्राथमिकी यानी एफआईआर (FIR) दर्ज करानी चाहिए।
कानून में हर नागरिक को अपने बचाव में समान अधिकार दिए गए हैं पति को भी पत्नी के खिलाफ एफआईआर का पूरा हक है।
2. यदि पत्नी 498A यानी दहेज प्रताड़ना के झूठे मामले में फंसाने की धमकी देती है अथवा आत्महत्या की बात कहकर धमकाती-डराती है तो भी बगैर देर किए उसके खिलाफ पुलिस स्टेशन (police station) में शिकायत दर्ज करा दें।
क्योंकि यदि पहले आपकी पत्नी की ओर से शिकायत दर्ज कराई गई तो उस वक्त पुलिस, प्रशासन के सामने आपके पास बचाव का साधन रहेगा। वरना आपको परेशानी झेलनी पड़ेगी।
3. यदि पत्नी के साथ संबंध ठीक नहीं, अक्सर चेतावनी, धमकी की नौबत आ रही हो तो धारा 9 का मुकदमा दर्ज कराएं पत्नी द्वारा किए जा रहे गलत कार्य, व्यवहार की लिखित शिकायत फैमिली कोर्ट (family court) में कर सकते हैं फैमिली कोर्ट ऐसे मामलों में काउंसिलिंग करता है। मामले का निदान हो जाता है।
यदि निदान नहीं होता तो पत्नी की ओर से झूठे मुकदमे की स्थिति में आपका पक्ष मजबूत रहता है कि आप सुधार की कोशिश कर रहे थे ऐसे में कोर्ट का पहला दृष्टव्य, जो अमूमन महिला के पक्ष में रहता है, वह आपके पक्ष में रहता है। साथ ही पत्नी की मानसिकता भी कोर्ट में एक्सपोज (expose) हो जाती है।
4. हिंदू विवाह व भरण-पोषण अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक
यदि पत्नी काउंसिलिंग के बाद भी न माने, अपनी मनमानी पर अड़ी रहे एवं कोर्ट की बात पर भी समझने को तैयार न हो तो संबंधित व्यक्ति के पास उससे पृथक यानी अलग होने का अवसर होता है।
पीड़ित व्यक्ति हिंदू विवाह व भरण-पोषण अधिनियम की धारा 13 के तहत शिकायत दर्ज तलाक के लिए दरख्वास्त कर सकता है। वह काउंसिलिंग समेत उसे समझाने के अन्य सुबूतों को अपने पक्ष में इस्तेमाल कर सकता है।
धमकाने के मामले में लगने वाली धारा एवं सजा-
अब हम आपको बताएंगे कि आईपीसी (IPC)- 1860 के अनुसार धमकाने के मामले में कौन सी धारा लगती है एवं क्या सजा होती है-
1. भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी- 1860 की धारा 506 के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति किसी को झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी देता है तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा। इसकी सजा दो साल है।
2. यदि कोई व्यक्ति अपराध की धमकी देता है तो इसे आपराधिक संत्रास पुकारा जाएगा। इसकी सजा सात साल अथवा जुर्माना है।
3. यदि कोई व्यक्ति खुदकुशी करने की कोशिश अथवा ऐसा करने के लिए कोई कार्य करेगा तो धारा 309 के प्रावधान के तहत उसे एक साल की जेल होगी। आपको यह जानकारी भी दे दें दोस्तों कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद इस धारा में बदलाव कर इसे अपराध की श्रेणी में हटा दिया गया है। लेकिन अब व्यापक छानबीन की व्यवस्था की गई है। जांच के दौरान आप यह बता सकते हैं कि खुदकुशी की धमकी आपको मानसिक उत्पीड़न के लिए दी गई है।
चेन्नई हाईकोर्ट (chennai highcourt) यानी मद्रास हाईकोर्ट कह चुका है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक पति के पास अपनी के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम जैसा कोई प्रावधान नहीं।
यह टिप्पणी चेन्नई हाईकोर्ट के जस्टिस एस वैद्यनाथन (justice s Vaidyanathan) की पीठ ने पशुपालन एवं पशु चिकित्सा विज्ञान निदेशक के आदेश के खिलाफ एक पशु चिकित्सक पी शशिकुमार की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
शशिकुमार का दावा था कि तलाक से कुछ ही दिन पूर्व उनकी पूर्व पत्नी की ओर से दायर एक शिकायत के आधार पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। पत्नी ने उन पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाया था। कोर्ट ने माना कि शिकायत करने का समय दर्शाता है कि पत्नी ने तलाक के आदेश का अनुमान लगाते हुए याचिकाकर्ता के लिए अनावश्यक परेशानी पैदा की।
शशिकुमार की पत्नी ने सलेम (salem) में न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था। साथ ही तलाक (divorce) का मामला भी शुरू कर दिया। इसके पश्चात शशिकुमार ने सलेम में एक शिकायत जज के सामने दर्ज कराई थी, जिसमें उसने पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाया था।
कोर्ट में प्रताड़ना साबित कर पुरूष तलाक ले सकता है
यदि पत्नी शारीरिक अथवा मानसिक तौर पर परेशान करे तो पति उससे इस आधार पर तलाक की मांग कर सकता है। परंतु इस संबंध में पति को कोर्ट में प्रताड़ना को साबित करना होगा। आपको यह भी बता दें साथियों कि पति को ऐसे मामलों में पहले पुलिस में शिकायत करनी चाहिए। कोर्ट में यह कदम काम आता है।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट साफ कर चुकी है कि यदि पति एवं उसके पारिवारिक सदस्यों के खिलाफ पत्नी झूठी शिकायत दर्ज कराती है तो यह भी प्रताड़ना एवं क्रूरता है। पति इस आधार पर तलाक का हकदार है। हाईकोर्ट की जस्टिस रितु बाहरी एवं जस्टिस अर्चना पुरी की खंडपीठ ने रोहतक (rohtak) के एक व्यक्ति के मामले में कोर्ट ने यह बात कही।
उन्होंने रोहतक फेमिली कोर्ट (rohtak family court) के आदेश को बरकरार रखते हुए पत्नी की तलाक के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया। मामले में सामने आया था कि अपीलकर्ता की पत्नी क्रूर एवं लड़ाकू प्रवृत्ति की है। वह शादी के तीन महीने से कम समय में ससुराल का घर छोड़ने, अपने पति एवं उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ फर्जी शिकायत करती रही है।
कई मामलों में तो यह भी देखने को मिला है कि 80-90 साल के पारिवारिक सदस्य, जो अपने सहारे उठने-बैठने में भी सक्षम नहीं, महिलाएं उन्हें भी 498A के तहत फंसाने में पीछे नहीं हटतीं। कई मामलों में इसी तरह की प्रवृत्ति को देखते हुए इस धारा के तहत आरोपी एवं उसके पारिवारिक सदस्यों की गिरफ्तारी पर रोक का प्रावधान किया गया है।
आलम यह है कि बहुत सी महिलाएं घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों का भी दुरुपयोग करने से नहीं कतरा रहीं। इसी को देखते हुए इन दिनों पुरुष अधिकारों की बात भी जोर शोर से उठने लगी है।
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जब परिवार में कमाने वाला एक ही व्यक्ति हो और वो भी अपनों की ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ ले, तो परिजन कहां जाएं? इन हालातों में बच्चों की पढ़ाई, घर और अन्य सदस्यों की ज़रूरत के ख़र्चों की ज़िम्मेदारी घर की महिला पर ही आ जाती है, तो उसे दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
इस दौरान परिवार को आर्थिक संबल की आवश्यकता होती है। इसी आर्थिक सुरक्षा की व्यवस्था क़ानून ने गुज़ारा भत्ते के रूप में की है। कहने को यह पारिवारिक मामला है, लेकिन ये आपका हक़ भी है। क्या होता है गुज़ारा भत्ता, आइए विस्तार से जानते हैं।
क्या कहता है क़ानून
गुज़ारा भत्ता अधिनियम धारा 125 का उपयोग अधिकांशत: भारतीय विवाहित स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है। अगर पति ने पत्नी को छोड़ दिया है या तलाक़ दे दिया है, तो महिलाएं धारा 125 के तहत हक़ मांग सकती हैं।
अगर घर पर रहने के बावजूद कमाने वाला व्यक्ति परिवार की ज़िम्मेदारी लेने से मना करता है, तब भी इस अधिनियम के तहत पत्नी, बच्चे, बूढ़े माता-पिता का जीवनभर भरण-पोषण करना कमाने वाले व्यक्ति या पति की ज़िम्मेदारी है।
गुज़ारा भत्ता बढ़ाया जा सकता है
परिवार को भरण-पोषण के तौर पर कितना भुगतान किया जाना ज़रूरी है, यह पति की कुल आय के आधार पर तय होता है। इसके लिए दावेदार को भरण-पोषण की जितनी रक़म चाहिए होगी, उसे अदालत के सामने रखना होता है। कमाने वाले की आय के सबूत के तौर पर वेतन का ब्योरा या आयकर रिटर्न आदि अदालत के समक्ष रखना होता है जिसके आधार पर फैसला होता है।
भरण-पोषण कितना मिल सकता है उसकी गणना चाइल्ड मेंटनेंस सर्विस से करवाई जा सकती है। अगर पति की आमदनी बढ़ती है और पत्नी ख़र्च बढ़ने के चलते भत्ता बढ़ाने की मांग करती है, तो इस स्थिति में गुज़ारा भत्ता बढ़ाया जा सकता है।
कौन अर्ज़ी लगा सकता है
परिवार का कोई भी सदस्य जो निर्भर हो वे खाना, कपड़े, पढ़ाई, इलाज, दवाई, किराया आदि का ख़र्च मांग सकते हैं। इस एक्ट के तहत पत्नी, अवयस्क संतान, पुत्र या पुत्री जो भरण-पोषण कर पाने में असमर्थ हैं, मांग कर सकते हैं। जब तक पुत्र वयस्क न हो जाए, तब तक उसके सारे ख़र्चे और भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी पिता की होगी।
पुत्री की शादी तक उसकी ज़िम्मेदारी पिता की रहेगी। शारीरिक या मानसिक रूप से असमर्थ पुत्र या पुत्री की ज़िम्मेदारी भी पिता की है। अगर महिला की आय पति से कम है, तो वो अर्ज़ी लगा सकती है। यदि उसकी आय पति से अधिक है, तो वो इसकी हक़दार नहीं है। इसके अलावा माता-पिता, जो अपना भरण-पोषण कर पाने में असमर्थ हैं, वे भी मांग कर सकते हैं।
विधवा पुत्री के भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी उसके ससुर की होगी। इसके लिए वह पिता से मांग नहीं कर सकती।
पुरुष भी मांग सकते हैं गुज़ारा भत्ता
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति या पत्नी, दोनों में से किसी को भी भत्ता मिल सकता है। हालांकि पति को तभी गुज़ारा भत्ता मिलेगा, अगर वह शारीरिक रूप से अक्षम हो जिसके चलते वह कमा नहीं सकता हो।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट
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जब पत्नी अपने अधिकारों की पुष्टि के लिए कार्यवाही शुरू करती है तो इसे कभी भी मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता:-
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